April 25, 2024

Bihar News : नीतीश कुमार रेल मंत्री रहते मोदी के अच्छे दोस्त बन गए, लालू कर चुके हैं इस रिश्ते को लेकर बड़ा खुलासा

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याराना या कुछ और मतलब कुछ नही...

Bihar News : नीतीश कुमार रेल मंत्री रहते मोदी के अच्छे दोस्त बन गए, लालू कर चुके हैं इस रिश्ते को लेकर बड़ा खुलासा

जी-20 डिनर में शामिल हुए नीतीश कुमार ने पीएम मोदी से मुलाकात की। उसके बाद कई तरह की सियासी चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। राजनीति के पिछले पन्ने पलटने पर नीतीश और पीएम मोदी के रिश्ते को लेकर बहुत कुछ जाना जा सकता है। हाल की पीढ़ी को बस इतना ही पता है कि नीतीश कुमार मोदी को पसंद नहीं करते। दोनों के रिश्ते काफी तल्ख हैं। गुजरात से बिहार की मदद के लिए भेजे गए पैसे लौटाने की घटना। हो या फिर भोज आमंत्रण को रद्द करने की घटना।

याराना या कुछ और मतलब कुछ नही…

लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) भारतीय राजनीति के मजे हुए खिलाड़ी हैं। एवरग्रीन नेता हैं। लालू यादव के बारे में कहा जाता है कि वो सियासत की उड़ती चिड़िया के पंख में हल्दी लगा देते हैं। लालू यादव राजनीति की हवा का रुख भांप लेते हैं। लालू यादव सियासत में अपने मोहरे काफी सोच-समझकर चलते हैं। लालू यादव को पता है कि कौन से नेता का राजनीतिक चरित्र कैसा है। जी हां, ये हम नहीं कह रहे हैं। उपरोक्त बातें कई वरिष्ठ पत्रकारों और राजनीतिक पंडितों का मानना है। जानकार कहते हैं कि आप लालू को हल्के में नहीं ले सकते। वे किसी भी नेता के हर पॉलिटिकल मूवमेंट को पहचानते हैं। लालू की सांसों में राजनीति बसी हुई है। जमीन से जुड़े होने की वजह से उन्हें पता है, कब कौन सा फैसला लेना है।

जी-20 डिनर में पीएम मोदी से मिले नीतीश कुमार को लेकर सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चा चल रही है। हालांकि, लालू यादव ने बहुत पहले नीतीश कुमार और पीएम मोदी के रिश्ते को लेकर बड़ा खुलासा किया था। अपनी आत्मकथा- ‘गोपालगंज से रायसीना’ मेरी राजनीतिक यात्रा में लालू ने इस रिश्ते को बखूबी से समझाया है। लालू प्रसाद यादव अपनी आत्मकथा में लेखक नलिन वर्मा को बताया है कि वाजपेयी सरकार में नीतीश कुमार रेल मंत्री थे। उस दौरान ही नीतीश कुमार का रिश्ता गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से बना। लालू यादव ने इस रिश्ते को लेकर क्या-क्या कहा, आइए समझते हैं।

यह कोई छिपी बात नहीं है कि वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री रहते नीतीश एनडीए खेमे में मुख्यमंत्री मोदी के सबसे बड़े प्रशंसक थे। नीतीश और मोदी अच्छे दोस्त बन गए। कुल मिलाकर मोदी के बचाव में वह आडवाणी जैसे लोगों के साथ ही थे और यह सुनिश्चित कराया कि वह मुख्यमंत्री बने रहें। मैं उनका मुख्य विरोधी था और नीतीश मेरा बिहार में कद कम करना चाहते थे।

2. इसके लिए उन्हें( नीतीश) को सिद्धांत के मामले में भारी समझौता करना पड़े। ऐसे में उनसे उम्मीद करना बेकार था कि वे गुजरात हिंसा के बारे में कुछ बोलेंगे। इसके अलावा 1999 में रेल मंत्री बनने के बाद नीतीश ने बीजेपी के कट्टरपंथियों से नाता जोड़ लिया था। उन्होंने अरुण जेटली से भी दोस्ती गांठ ली जो कि आडवाणी के खेमे के खास आदमी थे और 2004-05 में भाजपा के बिहार प्रभारी थे।

नीतीश और उनके समर्थकों ने जो वफादारी दिखाई थी, उसके एवज में आडवाणी ने 2005 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें एनडीए का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। वाजपेयी ने भी बिहार में भाजपा के लिए प्रचार किया, मगर उन्होंने कभी नीतीश को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया।

दरअसल उदारवादी स्वभाव के नेता वाजपेयी को न तो नीतीश पसंद थे और न ही उनके मित्र नरेंद्र मोदी। 2002 के दंगों के चलते जब मोदी पर गुजरात के मुख्यमंत्री पद छोड़ने का भारी दबाव था, तब आडवाणी ने ही उन्हें बचाया था। वाजपेयी चाहते थे कि हिंसा की जिम्मेदारी लेते हुए मोदी को पद छोड़ देना चाहिए, लेकिन आडवाणी अड़े रहे।

यह भी उस समय गौर करने वाली बात है कि धर्मनिरपेक्षता के अपने तमाम दावों के बावजूद नीतीश ने गुजरात में हुए अल्पसंख्यकों पर हमले के विरोध में वाजपेयी सरकार के मंत्री का पद नहीं छोड़ा। यही नहीं, नीतीश ने उस घटना के बारे में एक शब्द तक नहीं कहा। इसके बजाए 2003 में नीतीश गुजरात गए और वहां उन्होंने मोदी के कामकाज की तारीफ भी की।

उपरोक्त बातें लालू प्रसाद यादव ने अपनी आत्मकथा के लेखक को बताई हैं। इन बातों से स्पष्ट है कि नीतीश कुमार और पीएम मोदी के पूर्व के रिश्ते को लालू यादव बखूबी समझते हैं। लालू यादव को पता है कि बाद के दिनों ने नीतीश कुमार के रिश्ते काफी खराब हो गए। लालू यादव ने अपनी आत्मकथा- ‘गोपालगंज से रायसीना’ मेरी राजनीतिक यात्रा में खुद के और नीतीश कुमार के पूर्व के रिश्ते को भी बयां किया है। लालू यादव ने स्वीकार किया है कि नीतीश से उनकी मुलाकात आंदोलन के दिनों में हुई। समाजवादी सरोकारों की लड़ाई में नीतीश कुमार हमेशा लालू यादव के साथी रहे। लालू यादव हालांकि ये बात कहते हैं कि उस वक्त नीतीश कुमार इंजीनियरिंग कॉलेज के एक छात्र ही थे। लालू पहले से पूर्व रूप से एक राजनीतिक कार्यकर्ता बन चुके थे। लालू यादव ने एक बात ये भी स्वीकार की है कि वे नीतीश कुमार के एक मामले में कर्जदार हैं। जब कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में लालू ने दावा पेश किया। तब नीतीश कुमार ने उनका समर्थन किया था।

वैसे भी नीतीश कुमार के दिल्ली पहुंचकर जी-20 के डिनर में शामिल होने के बाद उठी चर्चाओं पर जानकार विशेष प्रतिक्रिया नहीं देते। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि राष्ट्रपति की ओर से बुलावा आया था। नीतीश कुमार उस लिहाज से गए थे। नीतीश कुमार और पीएम मोदी का जब रिश्ता पुराना है। इस रिश्ते में कुछ पल के लिए दोनों अजनबी भले बन गए हों, लेकिन रिश्ता टूटता थोड़े हैं। रहा सवाल इस मुलाकात को राजनीतिक चश्मे से देखने का तो ये बिल्कुल सही नहीं होगा। नीतीश कुमार इन दिनों विपक्ष के बड़े चेहरे बन गए हैं। उधर, बिहार में जेडीयू की बैठक में ललन सिंह ने कह ही दिया है कि नीतीश कुमार पीएम चेहरा हैं। गाहे-बगाहे जेडीयू के कार्यकर्ता ये बताते रहते हैं। नारेबाजी करते रहते हैं कि नीतीश कुमार ही पीएम बनेंगे। कुल मिलाकर अभी नीतीश कुमार का फोकस बिहार और विपक्षी एकता की मुहिम पर है। रहा सवाल पीएम मोदी से मिलने का, तो आपने देख ही लिया कि लालू यादव इस रिश्ते पर कितनी पैनी निगाह रखते हैं।

ऐसे में इस मुलाकात को किसी तरह की राजनीति से कोई मतलब नही है।

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