बड़ा अपडेट : मास्टर जी के लिए नई ‘घंटी,अब सरकारी स्कूलों में भी ‘EVS’
बड़ा अपडेट : मास्टर जी के लिए नई ‘घंटी,अब सरकारी स्कूलों में भी ‘EVS’
बिहार की शिक्षा व्यवस्था में इन दिनों जबरदस्त बदलाव की बयार चल रही है। सालों से चली आ रही क्लास में रूटीन को लेकर बड़ा चेंज किया गया है। केके पाठक के नए फॉर्म्युले के अनुसार अब बिहार के स्कूलों में सिर्फ पढ़ाई ही नहीं बल्कि अंग्रेजी स्कूलों की तर्ज पर EVS भी होगा। EVS का मतलब वो पढ़ाई जो पुराने जमाने की स्टडी सिलेबस से काफी हट कर है।
आखिरकार शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने बिहार के एजुकेशन सिस्टम को हाई फाई बनाने के लिए अपना नया फॉर्म्युला लागू कर दिया है। अब स्कूलों में बच्चे सिर्फ पढ़ेंगे ही नहीं बल्कि खेल के मैदान और बाग बगीचों में अपना हुनर भी दिखाएंगे। इसके लिए पूरे सिस्टम को ही बदलने की कवायद को अमलीजामा पहना दिया गया है। अब पटना और बाकी शहरों के प्राइवेट स्कूलों की तरह सरकारी स्कूलों में भी वो पढ़ाई कराई जानी शुरू की जा चुकी है, जिसके लिए अभिभावक हर साल निजी स्कूल में लाखों रुपए खर्च करते हैं।
केके पाठक ने स्कूलों में नए रूटीन को लागू कर दिया है। इस रूटीन में पढ़ाई के अलावा प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर EVS भी होगा। EVS यानी एनवायरमेंटल स्टडीज। इस नई रूटीन में ईवीएस को नए तरीके से शामिल किया गया है। स्कूलों में अब सिर्फ बच्चों के दिमाग की ही नहीं बल्कि शरीर की भी वर्जिश होगी। ये अलग बात है कि उन्हें पढ़ाई के लिए भी पूरा वक्त मिलेगा। EVS यानी एनवायरमेंटल स्टडीज के लिए रूटीन में बदलाव कर भी दिया गया है।
इसे यूं समझिए कि बिहार के प्राइवेट स्कूलों में EVS की पढ़ाई में बच्चों से आर्ट एंड क्राफ्ट (जैसे गत्तों, गोंद की मदद से खुद से कुछ बनाना, उदाहरण के तौर पर तिरंगा झंडा), बागवानी, खेलकूद को भी बिहार की शिक्षा व्यवस्था में शामिल किया गया है। यानी बिहार के सरकारी स्कूलों में ‘पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब’ जैसी दकियानूसी कहावतों को दरकिनार कर दिया गया है। प्राइवेट स्कूलों में इसी EVS के लिए अभिभावक एक साल में एक लाख से ज्यादा रुपए फीस के तौर पर भरते हैं। इसमें एडमिशन फीस, किताबों का मोटा खर्च, स्कूल की ड्रेस शामिल है। लेकिन अब बिना इतने रुपए खर्च किए आप सरकारी स्कूलों में भी वही सुविधा और बच्चों की बेहतर दिमागी और शारीरिक वर्जिश पाएंगे।
बात यहीं खत्म नही होती, अगर स्कूलो में किसी शिक्षक को ये लगे कि फलां बच्चा पढ़ाई में कमजोर है या फलां बच्चे सही से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं, तो उसके लिए भी व्यवस्था है। टीचर अपनी क्लास से ऐसे पांच बच्चों को चुनेंगे। इसके बाद जैसे ही 3:30 मिनट होंगे तो बजी बेल और हो गई छुट्टी का फंडा खत्म हो जाएगा। ठीक इसी वक्त से इन पांच कमजोर बच्चों को मिशन दक्ष में लाया जाएगा। इस दौरान पूरे 45 मिनट यानी दोपहर 3:30 बजे से शाम 4:15 बजे तक इन बच्चों की स्कूल में शिक्षक स्पेशल क्लास लेंगे। अगर केके पाठक का ये फॉर्म्युला काम कर गया तो समझिए कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था इंडिया ही नही विदेशों में भी जाना जाएगा।
Dbn news|पटना|एम राजा| 08 Dec 2023|