May 3, 2024

अब शादीशुदा महिला लिव-इन पार्टनर पर रेप का आरोप नहीं लगा सकती : हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

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अब शादीशुदा महिला लिव-इन पार्टनर पर रेप का आरोप नहीं लगा सकती : हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

दिल्ली हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रेप के आरोप पर महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि पहले किसी से शादी करने वाली महिला यह दावा कैसे कर सकती है कि दूसरे शख्स ने शादी का झूठा वादा कर उसके साथ संबंध बनाए। कोर्ट ने पुरुष पर रेप के आरोप को खारिज कर दिया।

New Delhi : लिव इन रिलेशन में रहने वाले लोगों को दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला जरूर पढ़ना चाहिए। हाई कोर्ट ने एक विवाहित पुरुष पर उसकी ‘लिव-इन पार्टनर’ के बलात्कार के आरोप को खारिज करते हुए कहा है कि पहले किसी से विवाह बंधन में बंध चुकी महिला दावा नहीं कर सकती कि दूसरे व्यक्ति ने शादी का झूठा वादा कर उसके साथ यौन संबंध बनाए। जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने बृहस्पतिवार को जारी एक आदेश में कहा कि इस मामले में दो ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जो एक-दूसरे से कानूनी रूप से विवाह करने के अयोग्य हैं लेकिन वे ‘लिव-इन रिलेशन एग्रीमेंट’ के तहत एक साथ रह रहे थे। लिव-इन का मतलब विवाह के बगैर एक महिला और पुरुष का साथ रहना।

आगे उन्होंने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा) के तहत उपलब्ध सुरक्षा और अन्य उपायों का लाभ इस प्रकार की ‘पीड़िता’ को नहीं मिल सकता। न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि किसी अन्य के साथ विवाह बंधन में बंधे दो वयस्कों का सहमति से ‘लिव-इन’ संबंध में रहना अपराध नहीं है और पक्षकारों को अपनी पसंद चुनने का अधिकार है। हालांकि (ऐसे मामलों में) पुरुषों और महिलाओं दोनों को इस प्रकार के संबंधों के परिणाम के प्रति सचेत होना चाहिए।

अदालत ने कहा, ‘शिकायतकर्ता/प्रतिवादी नंबर-2 स्वयं कानूनी रूप से तलाकशुदा नहीं थी और उसने अभी तक तलाक नहीं लिया है, ऐसे में याचिकाकर्ता कानून के अनुसार उससे शादी नहीं कर सकता था। समझौते में यह भी उल्लेख नहीं किया गया है कि याचिकाकर्ता/आरोपी के शादी के वादे के कारण वे एक-दूसरे के साथ रह रहे थे या इसके कारण रिश्ते में थे।’

मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता आरोपी ने कथित बलात्कार के संबंध में FIR रद्द किए जाने का अनुरोध किया था। उसने इसके पक्ष में कई आधार पेश किए, जिनमें एक आधार यह था कि शिकायतकर्ता का स्वयं का आचरण लोक नीति और समाज के मापदंडों के खिलाफ था। न्यायमूर्ति शर्मा ने आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता के खिलाफ की गई अपमानजनक टिप्पणियों की निंदा की और इसे उसकी महिला विरोधी सोच बताया। अदालत ने कहा कि यही समान मानक पुरुष पर भी लागू होते हैं और न्यायाधीश लैंगिकता के आधार पर नैतिक निर्णय नहीं दे सकते।

Desk|dbn news|New Delhi|22 September 23

Edit By : M Raja

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