New Delhi :डूसू चुनाव के दंगल में ABVP का बजा डंका
डूसू चुनाव के दंगल में ABVP का बजा डंका
New Delhi : दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव के नतीजे आ गए हैं। पिछली बार की तरह ही इस बार भी एबीवीपी के हाथ चार में तीन सीट लगीं, वहीं एनएसयूआई एक पर अटक गई। इस बार नोटा भी काफी असरदार रहा।
नई दिल्ली: पिछले तीन डूसू चुनाव का ट्रेंड इस बार भी बरकरार रहा। आरएसएस की एबीवीपी को प्रेजिडेंट समेत तीन सीटों पर जीत मिली, तो कांग्रेस की एनएसयूआई वाइस प्रेजिडेंट की सीट पर कब्जा करने में कामयाब हुई। 2018 और 2019 में भी सीटों का यही अनुपात था। एनएसयूआई ने इन दोनों साल सेक्रेटरी की पोस्ट मिली थी, मगर इस बार इस कदम बढ़ते हुए वाइस प्रेजिडेंट की पोस्ट पर जीत हासिल की। प्रेजिडेंट और वाइस प्रेजिडेंट दोनों की पोस्ट पर एनएसयूआई ने एबीवीपी को मुकाबला दिया। जैसे-जैसे काउंटिंग की राउंड बढ़ते गए मुकाबला दिलचस्प हुआ। 27 राउंड की वोटों की गिनती में बीच के कुछ राउंड में प्रेजिडेंट पोस्ट पर एनएसयूआई कैंडिडेट हितेश गुलिया आगे भी आए, मगर बाद में एबीवीपी के तुषार डेढ़ा ने उन्हें 3115 वोटों से हरा दिया। इसी तरह वाइस प्रेजिडेंट पोस्ट पर भी कांटे की टक्कर रही। शुरुआत में एबीवीपी के सुशांत धनकड़ आगे रहे मगर तुरंत बाद एनएसयूआई के अभि दहिया ने पकड़ बना ली। कुछ राउंड में फिर सुशांत बढ़े मगर 12वें राउंड से अभि के पाले में जीत जाती नजर आने लगी। वो 1829 वोटों से जीते।
एबीवीपी को तीन सीट पर 93 हजार से ज्यादा वोट मिले हैं। डूसू के पूर्व प्रेजिडेंट एबीवीपी के अक्षित दहिया कहते हैं, पहली बार एबीवीपी को 93 हजार से ज्यादा वोट तीन सीटों पर मिले हैं। वहीं, आइसा और एसएफआई को नोटा से भी कम वोट मिले हैं। डूसू में एबीवीपी ने 2019 में तीन सीटों पर कब्जा किया था और एक सीट एनएसयूआई के नाम रही थी। एबीवीपी के अक्षित दहिया ने एनएसयूआई की चेतना त्यागी को हराया था। वहीं, डूसू पैनल की प्रेजिडेंट, वाइस प्रेजिडेंट और जॉइंट सेक्रेटरी पोस्ट एबीपीपी के कैंडिडेट जीते और सेक्रेटरी पोस्ट एनएसयूआई को मिली थी। इसी तरह 2018 में डूसू में एबीपीपी को 3 और एनएसयूआई को 1 पोस्ट मिली। प्रेजिडेंट पोस्ट एबीवीपी के अंकिव बसोया ने जीती थी, हालांकि फर्जी डिग्री की वजह से वे हटा दिए गए और वाइस प्रेजिडेंट पोस्ट पर एबीवीपी कैंडिडेट शक्ति सिंह इस पोस्ट पर प्रमोट हुए। 2017 में एनएसयूआई को प्रेजिडेंट (रॉकी तुसीद), वाइस प्रेजिडेंट और बाकी दो एबीवीपी को मिली। 2016 को प्रेजिडेंट (अमित तंवर) समेत तीन सीटें एबीपीवी और एक एनएसयूआई को मिली थी। 2014 और 2015 में एबीवीपी का क्लीन स्वीप था।
डूसू चुनाव ने नोटा कुछ साल से खास बन रहा है। इस बार भी नोटा (None of the above) का असर जमकर दिखा। प्रेजिडेंट पोस्ट पर नोटा 2751 स्टूडेंट्स, वाइस प्रेजिडेंट पोस्ट पर 3914 स्टूडेंट्स, सेक्रेटरी पोस्ट पर 5108 स्टूडेंट्स और 4786 स्टूडेंट्स ने चुना। चारों पोस्ट पर 16559 स्टूडेंट्स ने नोटा दबाया था। 2019 में चारों पोस्ट के लिए 27576 बार नोटा (14.85%) का बटन दबाया गया था। 2018 में चार पोस्ट के लिए 27729 बार नोटा का बटन दबाया गया। 2017 में चारों पोस्ट के लिए 29765 नोटा चुना गया। इसके अलावा, डूसू के लिए वोटिंग में इस बार स्टूडेंट्स ढीली रहे और सिर्फ 42.16% स्टूडेंट्स ने वोट दिया। 2019 में 39.9% स्टूडेंट्स ने, 2018 में 44.6%, 2017 में 42.8%, 2016 में 36.9% और 2015 में 43.9% स्टूडेंट्स ने डूसू पैनल के लिए वोट दिया था।
हल्की वोटिंग और नोटा बता रहे हैं कि स्टूडेंट्स मनी-मसल्स पॉलिटिक्स से अलग कुछ चाहते हैं। इस साल कई कॉलेजों में भी नोटा को लेकर स्टूडेंट्स के बीच कुछ ग्रुप अपील कर रहे थे कि बेस्ट कैंडिडेट को चुनें ना कि नोटा का बटन दबाएं। मगर नोटा का बटन दबना कम नहीं हुआ है। इसकी एक वजह यूनिवर्सिटी के चुनाव में मु्द्दों की बजाय, राजनीतिक पार्टियों की टकरार, पैसा बहाना, बड़े-बड़े होर्डिग्ंस, महंगी कारों का काफिला, यूनिवर्सिटी और कॉलेजों से बाहर के लोगों का दखल और पोस्टर्स के कूड़े और प्रचार से रंगी दीवारों की गंदगी भी है। हॉस्टल की कमी, महंगा ट्रांसपोर्ट, लाइब्रेरी में किताबों की किल्लत, कमजोर इन्फ्रास्ट्रक्चर, महंगी फीस, पीने की पानी की कमी जैसे मुद्दों पर लीडर्स का ध्यान चाहते हैं। हर साल डूसू पैनल बनता है मगर स्टूडेंट्स की परेशानियों का हल नहीं निकलता इसलिए स्टूडेंट्स कम वोटिंग और नोटा की तरफ जा रहे हैं। दरअसल इस बार नोटा का प्रयोग भी कई महत्वपूर्ण रिजल्ट को प्रभावित किया है।
Desk|dbn news|New Delhi | 24 September 23
Edit By:M Raja